• अथ श्री मुर्गी संकट मोचन कथा

    संकट की घड़ी में डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है। प्राणों से भला किसे मोह नहीं होता

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    - सुधाकर आशावादी

    संसार में प्राणी मात्र श्वासों की डोर पर ज़िंदा रहता है। विज्ञान जीवन के लक्षण बताकर जीव जंतुओं में जीवन का आधार सुनिश्चित करता ही है। मुर्गी फार्म से लेकर बकरी पालन तक बहुत से व्यवसाय आजीविका के साधन के रूप में गतिशील रहते हैं। बलशाली कमजोर का भक्षण करके अपनी उदरपूर्ति करता है। इस वास्तविकताओं को नकारने का कोई औचित्य भी नहीं है।

    संकट की घड़ी में डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है। प्राणों से भला किसे मोह नहीं होता। फिर भी नश्वर जगत यही है, कि जिसने भी पृथ्वी पर जन्म लिया है, उसे एक दिन मृत्यु का वरण करना ही होगा। श्री मदभागवत गीता में तो शरीर और आत्मा का संबंध भी केवल चोला बदलने तक सीमित कर दिया है। किसी ने संसार को प्रपंच मात्र कहकर जीवन को सपने की संज्ञा दी है,तो किसी ने जिंदगी के सफर को ही एक पहेली बता दिया। किसी ने कहा जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना। जिसने जैसा जिंदगी को जाना समझा, वैसा ही परिभाषित किया यानि जाकी रही भावना जैसी , तिन देखि जिंदगी की मूरत वैसी।

    संसार में प्राणी मात्र श्वासों की डोर पर ज़िंदा रहता है। विज्ञान जीवन के लक्षण बताकर जीव जंतुओं में जीवन का आधार सुनिश्चित करता ही है। मुर्गी फार्म से लेकर बकरी पालन तक बहुत से व्यवसाय आजीविका के साधन के रूप में गतिशील रहते हैं। बलशाली कमजोर का भक्षण करके अपनी उदरपूर्ति करता है। इस वास्तविकताओं को नकारने का कोई औचित्य भी नहीं है।

    फिर भी कुछ ऐसा है, जो अहिंसा परमो धर्म: का भाव हृदय में बनाए रखता है, जिस कड़ी में राजकुमार सिद्धार्थ की घायल हंस को बचाने की कहानी स्मरण हो आती है, जिसमें यह संदेश दिया गया था, कि घायल करने वाले शिकारी से घायल पक्षी को बचाने वाला बड़ा होता है। जिसके हृदय में दया का भाव नहीं, वह पत्थर के समान होता है। अपने अनंत बाबु भी बड़े दयावान निकले। वह पदयात्रा पर थे, उन्होंने देखा कि कुछ मुर्गियों को सींखचों में भरकर कहीं ले जाया जा रहा है। उन्हें लगा कि जैसे मुर्गियां आतंकित हैं, मौत का भय उनकी आँखों में व्याप्त है, सो अनंत बाबु को मुर्गियों की दयनीय स्थिति पर तरस आ गया उन्होंने मुर्गियां ढोने वाले वाहन को रोका, उससे पूछा - इन मुर्गियों को कहाँ ले जा रहे हो ?

    अनंत बाबू को बताया गया. कि मुर्गियां अंतिम सफर में हैं, इन्हें कसाई के हाथों में सौंपने की तैयारी है। ये कसाई घर में कसाई को सौंपी जाएंगी, उसके बाद पांच सितारा होटल में लजीज व्यंजन बनाकर परोसी जाएंगी। अनंत बाबू ने तुरंत ही मुर्गियों को बचाने का निर्णय लिया और दोगुने भाव देकर उनका सौदा कर लिया। एक मुर्गी को अपनी गोद में लेकर सहलाया भी। मुर्गी को आश्वस्त भी किया कि प्राण रक्षा के साथ वे उनका पालन पोषण भी करेंगे। पता नहीं कि मुर्गियां या मुर्गे अनंत बाबू की दया को समझ पाए या नहीं, किन्तु कुछ समय के लिए तो उनकी और मौत के बीच की दूरी बढ़ ही गई।

    राजकुमार सिद्धार्थ की कहानी शुरू होने से पहले ही दोहरा दी गई। अनंत बाबू की दरियादिली यह जताने में भी समर्थ हुई कि यदि धन है, तो उसका सदुपयोग निर्बलों की प्राण रक्षा हेतु भी होना चाहिए। प्राणों पर आए संकट के लिए संकटमोचक से प्रार्थनाएं धर्मस्थलों में की जाती हैं। ऐसे में मुर्गी संकट मोचन कथा यही है, कि पीड़ा के क्षण में कब संकट मोचक बनकर पीड़ा हरने के लिए उपस्थित हो जाए, कहा नहीं जा सकता, क्योंकि सड़कों पर नित्य ही पशु पक्षियों का कारोबार होता है, मगर कितने ऐसे होते हैं, जो भले ही कुछ समय के लिए पर पीड़ा समझकर किसी की पीड़ा दूर करने के लिए आगे आते हैं।

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें